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उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज में एक दिवसीय व्याख्यान का आयोजन

भारत की एकता एवं एकात्मकता में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी का योगदान

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प्रयागराज: आज दिनांक 30 मार्च 2024 को राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान विद्या शाखा उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय प्रयागराज एवं भारतीय भाषा समिति शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वाधान में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी पर एक दिवसीय व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसका विषय भारत की एकता एवं एकात्मकता में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी का योगदान था। उक्त कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो0 संतोषा कुमार निदेशक, समाज विज्ञान विद्या शाखा ने किया । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्रीमान अभयजी क्षेत्र धर्म एवं जागरण प्रमुख पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा मुख्य वक्ता प्रोफेसर जटाशंकर तिवारी पूर्व विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय थे।


कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो0 जटाशंकर तिवारी जी ने भारत की एकता एवं एकात्मकता में जगतगुरु श्री शंकराचार्य के योगदान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला तथा कहा की अद्वैत का अर्थ वह चिंतन जो उपस्थित सभी चिंतन में श्रेष्ठ हो, परम तत्व अद्वैत है। विद्यारण्यकृत शंकरदिग्विजय ग्रंथ के माध्यम से शंकराचार्य के देश भ्रमण के बारे में चर्चा की तथा यह भी कहा कि आत्मतत्व को सिर्फ मनुष्य तक ही सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए। सृष्टि में जो भी है उसमें आत्म तत्व है सृष्टि और सृष्टा में कोई फर्क नहीं है, शंकराचार्य की तत्व मीमांसा ,शंकराचार्य के राजनीतिक दर्शन, शंकराचार्य ने मठों के माध्यम से सनातन परंपराओं की पुनर्स्थापना कैसे की। तथा सनातन यज्ञ परंपरा की रूढ़ि के जटिलता को कैसे दूर कर सांस्कृतिक एकरूपता स्थापित की। अद्वैतवाद तथा सांख्य दर्शन के बीच विभिन्नता को भी परिलक्षित किया। यह अभी बताया कि शंकराचार्य के बाद के युग में शंकराचार्य के विचारों की कैसी प्रासंगिकता बनी रही तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में आजादी के महानायकों गांधी जी, नरेंद्रदेव, विवेकानंद आदि के विचारों पर अद्वैतवाद का प्रभाव भारत की एकता और एकात्मकता को प्रमाणित करता है। शंकराचार्य और नागार्जुन की अध्ययन पद्धति का भी उल्लेख किया।


कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्रीमान अभय जी ने शंकराचार्य के दर्शन के माध्यम से भारतीय संस्कृति के विभिन्न तत्वों पर प्रकाश डाला साथ ही भारतीय संस्कृति के गौरवान्वित करने वाले वाली घटनाओं का उल्लेख किया बुद्धि वादी तथा यथार्थवादी विचारों पर प्रकाश डाला मूलग्रंथो का स्थान भाष्यों ने किस तरह ले लिया है मूलग्रंथो की सारगर्भित के संकट को उजागर किया। यह भी बताया कि सभी दर्शनों का आधार वेद है भारतीय मापदंडों के आधार पर आधारित बाद दर्शन की व्याख्या पर बल दिया तथा भारतीय संस्कृति हमारे पूर्वजों द्वारा संचित संस्कार हैं इनका संरक्षण करने पर जोर दिया।


कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे समाज विज्ञान विद्या शाखा के निदेशक प्रोफेसर संतोष कुमार जी ने शंकराचार्य की विचारों के द्वारा भारत की एकता के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला तथा साथ ही आत्मा की अमरता पर बल दिया। सृष्टि जीवन मरण के माध्यम से अद्वैतवाद को स्पष्ट किया संस्कृत एकरूपता में अद्वैतवाद के योगदान के बारे में बताया।
इसके पूर्व कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्रीमान अभय जी का सम्मान कार्यक्रम के सचिव डॉक्टर आनंदानंद त्रिपाठी ने, मुख्य वक्ता का सम्मान प्रो0 संजय सिंह ने, कार्यक्रम के अध्यक्ष का सम्मान डॉ0 त्रिविक्रम तिवारी ने पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र तथा मोमेंटो के द्वारा किया।
कार्यक्रम के आरंभ में सरस्वती वंदना का गायन अनुराग शुक्ल असिस्टेंट प्रोफेसर योग के द्वारा तथा विश्वविद्यालय की कुल गीत की संगीतमय प्रस्तुति की गयी। कार्यक्रम में आए हुए सभी अतिथियों तथा श्रोताओं का वाचिक स्वागत प्रो0 संजय सिंह ने किया तथा व्याख्यान का विषय परिवर्तन कार्यक्रम के आयोजन समन्वयक डॉक्टर आनंदानंद त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर सत्यपाल तिवारी निदेशक मानविकी विद्या शाखा ने किया इस समस्त कार्यक्रम का संचालन डॉ0 सुनील कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर इतिहास समाज विज्ञान विद्या शाखा ने किया।

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