सिमरनजीत सिंह/शाहजहांपुर: बदलते जमाने में भले ही सौर घड़ी और चंद्र घड़ियों की जगह डिजिटल घड़ियों ने ले ली हो, लेकिन शाहजहांपुर की जामा मस्जिद में सैकड़ों साल पुरानी सौर घड़ी आज भी समय का ज्ञान कराती है. इस घड़ी को देखकर मस्जिद में अजान होती है. इतना ही नहीं रमजान के दिनों में इस घड़ी से सहरी और इफ्तारी का वक्त भी मुकर्रर किया जाता है.
इतिहासकार डॉ विकास खुराना ने जानकारी देते हुए बताया कि शहर के चौक क्षेत्र में सन 1698 में शाहजहांपुर शहर के संस्थापक नवाब बहादुर खान के बेटे अजीज खान ने जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. मस्जिद का निर्माण होने के बाद सन 1712 में यहां अजान के लिए सौर घड़ी बनवाई गई थी. इतना ही नहीं यहां एक चंद्र घड़ी भी हुआ करती थी, जो अब यह नहीं है. लेकिन सौर घड़ी ज्यों कि त्यों बरकरार है. दो ऊंची आलीशान मीनार और 14 गुंबद वाली यह मस्जिद अपनी खूबसूरती और अनोखी वास्तुकला के लिए जानी जाती है. इस मस्जिद को अपनी खूबसूरती की वजह से ‘मस्जिद शोभ’ के नाम से भी जाना जाता है.
10 मिनट पीछे चलती है ये घड़ी
इतिहासकार डॉ. विकास पुराना बताते हैं कि शाहजहांपुर में मौजूद यह सौर घड़ियां 10 मिनट पीछे का समय बताती है. भारत की समय रेखा नैनी के पास से गुजरती है. शाहजहांपुर और प्रयाग के बीच लगभग 2.5 देशान्तर का अंतर (गौरतलब है कि है 1 देशान्तर से दूसरी देशान्तर के बीच 4 मिनट का अंतर होता है ). उस हिसाब से 10 मिनट का अंतर स्वाभाविक है.
टूट गई चंद्र घड़ी लेकिन सौर घड़ी करा रही समय का ज्ञान
डॉ. विकास खुराना बताते हैं कि यहां सौर घड़ी के साथ-साथ चंद्र घड़ी भी मौजूद थी. चंद्र घड़ी जो रमजान के दिनों में रोजेदारों के लिए समय देखने के काम आती थी. लेकिन रखरखाव के अभाव में चंद्र घड़ी टूट गई. डॉ. विकास खुराना कहते हैं कि हालांकि तकनीक के दौर में सौर घड़ी और पेंडुलम वाली घड़ी की जगह अब डिजिटल घड़ियों ने ले ली है, लेकिन यह घड़ी आज भी अपने आप में बहुत यादों को समेटे हुए है. ऐसे में इसको धरोहर के रूप सहेजने की जरूरत है.
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FIRST PUBLISHED : March 29, 2024, 17:27 IST