अमृत महोत्सव के बाद क्या !!!
यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय बात है कि हम अपनी देशभक्ति की क्षणिक यह यूं कहें कि अवसरवादी भावनाओ को दिखाने व प्रदर्शन हेतु अपने अस्मिता की पहचान “राष्ट्र ध्वज” को कही भी किसी भी रूप में अंकित कर देते हैं जोकि चंद दिनों बाद सड़को में नाले नालियों में गटरों में और कूड़े के अम्बरो में ही नजर आते हैं देशभक्ति के प्रति यह कैसी आस्था है जिसे अनंतः आहत ही होनी है ! माना जूता कितना भी महंगा हो पर उसे शीश पर तो धारण नही किया जा सकता और न ही पगड़ी कितनी भी मैली हो उसे पग में कदापि नही लगाया जा सकता तो फिर ये आचरण भारत के राष्ट्रीय प्रतीक “राष्ट्र ध्वज” के साथ क्यो ?
वह राष्ट्र ध्वज जिसकी गरिमा अस्मिता के लिए लाखों लाखो कांतिकारी,माँ भारती के वीर पुत्र बलिदान/शहीद हो गए जिसे हिमालय की शिखर पर फहराया गया चाँद की सहत पर लहराया गया उसे आज हमने सौंदर्यीकरण के लिए सड़कों के किनारे घर के खिडकियों, दरवाजो,दीवारों पर चस्पा कर रखा है जो तिरंगा लह लहा हमारे नसों में रक्त के प्रवाह को विधुत के तरंगों की तरह तेज कर देती है आज उसे हमने कैद कर दिया समाचार पत्रों,कागजो,दूध-दही के पैकेटों ,दीवारों व सड़को के रेलिगों आदि आदि जगहों पर –
भारत के एक सच्चे और स्वावलम्बी राष्ट्रभक्त को अपनी राष्ट्रभक्ति को साबित व प्रदर्शित करने के लिए किसी दिन-दिवश आदेश व हुक़्म फ़रमनो की जरूरत नही है ‘ यह भूमि में पड़े उन बीजों की तरह हैं जिन्हें जरा भी नमी मिलते है ही वह पत्थर का भी सीना चीर अंकुरित हो उठते हैं ‘ और अगर एक राष्ट्रभक्त की दृष्टि से देखा जाए तो वह स्वयं चाहता है कि जैसे स्वतंत्रता एक आम नागरिक का मौलिक अधिकार है ठीक उसी प्रकार राष्ट्रध्वज के भी कुछ मौलिक व मूलभूत अधिकार होने चाहिए कि उसे कही कोई कैद न कर सके मन मुताबित उसे कोई अपना मन मुताबित स्वरूप न दें सके उसे कही भी किसी भी रूप में अंकित व प्रदर्शित न कर सकें यह इसलिए भी जरूरी है कि जो कल तक जिन सड़को के किनारे रेलिगों दीवारों पर लोग थूकते व मल-मूत्र त्यागते थे आज वही उसे राष्ट्र ध्वज के रंग के कपड़ो से ढक दिया गया है और तो और जिस राष्ट्र ध्वज के नाम पर हम लाखो-करोड़ो खर्च करते हैं उसका आउटपुट वास्तव में एक हमारी मात्र कल्पना है जिसे कही पर लाल तो कही केशरिया सफेद व हरे रंग के कपड़ो से अंकित किया जाता है तो कही इसे गोले चौकोर त्रिभुज व भिन्न भिन्न आकृतियों में तो कही अशोक स्तम्भ के चक्र के साथ तो कही उसके बगैर परंतु क्या यह अनुचित नही की हम अपने ही राष्ट्र प्रतीक के साथ उसके मौलिक स्वरूप के साथ छेड़छाड़ कर रहें हैं जोकि कदापि न्यायोचित नही है यह ठीक उसी प्रकार है जैसे कि ‘ स्वर और व्यंजन के मिश्रण के बिना शब्द और भाषा का कोई अर्थ व अस्तित्व नही ‘ ठीक उसी प्रकार ‘ भारत के राष्ट्र ध्वज में तनिक भी छेड़छाड़ उसके मूल स्वरूप व उसकी भावना को खो देती है ‘ जिस पर हम अपनी आस्था और भावनाएं व्यक्त तो करते हैं परंतु वह ठीक उसी प्रकार हैं जैसे कि ‘ अज्ञानता अंधविश्वास के कारण देव् स्वरूप में किसी सामान्य से पत्थर को विधिसंवत पूजा जाता हो ‘-
जहाँ कभी कही किसी चौराहे पर लगे उस विशालकाय लह लहाते हुए ध्वज को देखकर शीश स्वयं ही उसके सम्मान में झुक जाता था बल्कि उसकी विशालता व सौन्दर्यता से मन ही प्रफुल्लित नही होता था बल्कि ह्रदय व हिम्मत की विशालता भी बढ़ जाती थी परंतु आज इस अभियान ने मानो मन के भावो को संकुचित कर दिया हो यह ठीक उसी प्रकार है जैसे किसी अति महत्वपूर्ण स्थल की प्रतिमा को गाली मोहल्लों में स्थापित कर दी जाए तो उसके महत्व में स्वाभाविक ही कमी आ जाती है और जहां पर लाखों की संख्या में घरों पर राष्ट्र ध्वज लगे होंगे जोकि कुछ छोटे कुछ बड़े कुछ ऊँचे कुछ नीचे कुछ फ़टे तो कुछ पुराने भांति भांति के उनमे से कुछ मनको के अनुसार तो कुछ अपने जरूरतों के परंतु ध्वज कैसा भी हो जिस प्रकार एक वृक्ष की छाया व उसकी छांव या दूर से ही उसके प्रभाव से पड़ने वाली शीतलता मनुष्य को भीषण गर्मी से ठंडक पहुँचाती है ठीक उसी प्रकार ध्वज की छाया व उसकी उपस्थिति ही किसी राष्ट्रवादी मनुष्य को गारवांगीत करने के लिए काफी है
व निश्चिंत ही प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में भारत के राष्ट्रीय प्रतीको के प्रति पूर्णतः निष्ठा व सम्मान विधमान है जिस पर तनिक भी संदेह नही किया जा सकता यद्दपि कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो परंतु यदि तिरंगे के वास्तविक अहमियत के भाव को समझना हो तो किसी खिलाड़ी के जीवन से बखूबी समझा जा सकता है कि वह दशकों दशकों तक दिन रात एक कठिन अभ्यास व अथक परिश्रम के बाद उसके कंधो पर तिरंगा सजता है व प्रत्येक खिलाड़ी व देशवासी का सपना होता है कि अंतराष्ट्रीय स्तर के मंचो पर राष्ट्र गान के धुन के साथ उसका राष्ट्रध्वज शीर्ष पर फहराया जाए जैसा की विगत कुछ दिन पूर्व ही बर्मिंघम में हुए 22वे राष्ट्रमंडल खेलों में देश के बहादुर बेटे बेटियों ने स्वर्ण पदक जीत कर देश को गारवांगीत ही नही किया बल्कि उन्होंने सात समंदर पार जाकर वस्त्विकरूप से आजादी के इस “अमृत महोत्सव” को अलंकृत किया व साथ ही साथ सीमाओं पर तैनात जवानों व उनके माता-पिता के मार्मिक दृष्टिकोण से भी समझा जा सकता है कि ‘जिन्होंने अपने नवजवान बच्चो को जब तिरंगे में लिपटे हुए अपनर आँगनों में पाया तो अपनी असहनीय पीढ़ा को समेट कर गर्व के साथ अपने परिजनों को आजीवन के लिए विदा कर दिया’
ठीक जिस प्रकार प्रत्येक नागरिक का उसके राष्ट्र ध्वज पर पूर्णतः अधिकार है परंतु उस अधिकार के वसीभूत होकर उससे होने वाले सम्मान के हनन को भी नही नकारा जा सकता और जब बात राष्ट्र ध्वज के सम्मान के हनन की तो कदापि भी नही विगत वर्ष वर्तमान की सरकार के द्वारा शहरों महानगरों के मुख्य स्थानों व संस्थानों में बड़े बड़े राष्ट्र ध्वजो कि स्थपित करने का आदेश निश्चिन्त ही स्वागत योग्य रहा है व जिसकी भूरी भूरी प्रसंसा की जानी चाहिए परन्तु “घर घर झंडा” के इस अभियान का समर्थन तो है परंतु कुछ मूलभूत सुधारो के साथ ही इसे स्वतः स्वीकार भी जा सकता पंरतु देश का यह भी दुर्भाग्य है कि आजादी के इस अमृतकाल में भी आज भी देश के लाखो लाखो परिवारों के पास उनका अपना घर ही नही है जोकि खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं तो इस लिहाज से यह मुहिम उन तमाम लोगो से वैसे भी वंचित हो गई तो क्या फिर यह माना जाए कि यह आजादी का अमृत महोत्सव सिर्फ उन नागरिको के लिए हैं जिनके अपने घर हैं ! काश यह बेहतर होता अगर हम आजादी के इस अमृत महोत्सव को हम इस ध्वजारोहण को प्रत्येक गांव गली मोहल्लों के एक महत्वपूर्ण स्थान पर समस्त ग्रामवासियों के साथ एक साथ मिलकर फहराते व माँ भारती के जय का एक साथ उद्घोष करते व सभी एक दूसरे को गले लगाकर भाईचारे के साथ इस अमृत महोत्सव की शुभकामनाएं देते व विगत वर्ष के भांति घर घर में दिया जला कर व हर घर से एक वृक्षारोपण कर इसे मानते जोकि मुझे पूरा विश्वाश है जिसकी अमित छाप एक दो दिन नही अपितु आजादी के 100 वें वर्षगांठ तक संपूर्ण भारत को लाभान्वित करती परंतु अब आज का महत्वपूर्ण विषय या नही है कि आजादी के 75 वे वर्षगांठ में हमने कितने करोड़ो झंडों को वितरित किया गया व फहराया गया महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि “15 अगस्त के बाद !” उन तमाम करोड़ो करोड़ो राष्ट ध्वजों का क्या होगा ? जो करोड़ो घरों पर सुसज्जित हैं ? क्या उसे उसी सम्मान व उत्साह के साथ सँजोहा जाएगा जैसे कि अभी हो रहा है और यदपि अगर किन्ही कारण वश किसी ध्वज को ससम्मान उसका निस्तारण करना हो उसकी क्या प्रक्रिया होगा आम जन मानस को इससे प्रति भी जागरूक किया जा रहा है या नही या सिर्फ हम अतिउत्साहित होकर सिर्फ एक दिन के लिए देश के कम कोने को राष्ट्र ध्वज से सजाने में ही लगे हैं यह तो देखने वाली बात है कि आगे क्या होता है परंतु एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर किसी नेक कार्य पर सिर्फ टिप्पणी का करने के बजाय और सरकार व प्रसाशन के भरोसे न बैठ कर हम स्वतः ही स्वयं को अपनी जिमेदारियो के प्रति खुद व अपने आस पास के जनमानस को जागरूक करें और उसी जागरूकता की श्रृंखला में ये निम्न विशेष बाते स्मरण करने योग्य हैं –
भारतीय ध्वज संहिता 2002 (Flag Code of India) के मुताबिक, राष्ट्रीय ध्वज के कटे फ़टे होने के बाद उसके निस्तारण करने के दो तरीके हैं – दफ्नाना या जलाना परंतु इस दौरान हमे कुछ विशेष बातो को ध्यान में जरूर रखना चाहिए कि झंडे को किसी साफ सुथरे स्थान में जमीन के कुछ नीचे इसे ससम्मान मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए उसके ततपश्चात कुछ क्षण मौन रखना चाहिए यदि किंही परिस्थितियों में किसी क्षतिग्रस्त ध्वज को जलाना हो तो किसी साफ स्थान में आग को प्रज्वलित कर ध्वज को बिना मोड़े पूरा का पूरा आग में समर्पित कर देना चाहिए व इस बात का विशेष स्मरण रहे कि वह पूर्णतः जल गया हो यद्यपि ध्वज को जलाना उसका अपमान है परंतु विशेष व क्षतिग्रस्त परिस्थितियों में सम्मान पुर्वक इसका निर्वाहन किया जा सकता है
लेखन :- विशाल मिश्रा