PRAYAGRAJ EXPRESS
News Portal

पार्टी न बने मुख्‍य न्‍यायधीश : महंत धर्मदास जी महााराज

कहा, हिन्‍दू-मुस्‍लिम दोनों ही समुदाय फैसलों को लेकर जता चुके नाराजगी

259

प्रयागराज। संत समुदाय से हनुमानगढ़ी अयोध्‍या के महंत धर्मदास जी महाराज ने भी मुख्‍य न्‍यायधीश के खिलाफ बिगुल फूंकने का ऐलान प्रयागराज की धरती कुम्‍भ से कर दिया है। उन्‍होंने बताया कि इसको लेकर उन्‍होंने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है। महंत धर्मदास जी महाराज ने न्‍यूज़लैम्‍प हिन्‍दी दैनिक के संवाददाता से बात करते हुए ऐलान किया कि मुख्‍य न्‍यायधीश के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए वे संसद तक कूच करने से गुरेज नहीं करेंगे।

महंत धर्मदास जी महाराज ने ये घोषणा की यदि सरकार उनकी दिए गए पत्र को गंभीरता नहीं लेती है तो कुम्‍भ में सभी संत, महत्‍माओं व साधुओं को एकजुट कर बड़ा अभियान चलाएंगे। सभी अखाड़ों की बैठक कर ये सुनिश्‍चित करने का प्रयास करेंगे की अयोध्‍या मामले पर सभी एकमत होकर इस मुद्दे को आगे बढ़ाएं। उन्‍होंने प्रधानमंत्री से मांग की कि मुख्‍य न्‍यायधीश को हटाने के साथ ही उनकी खिलाफ महाभियोग लाया जाए। जिससे लोगों व संत समाज की न्‍याय के प्रति आस्‍था बढ़ सके।

उन्‍होंने बताया कि बीते कुछ हफ़्तों में देश की सर्वोच्च अदालत ने ऐसे कई महत्वपूर्ण फ़ैसले दिए हैं जिनका पूरे देश पर लंबे समय तक प्रभाव रहेगा। ग़ौर करने की बात ये है कि इनमें से कई फ़ैसले असहमति भरे विचारों के साथ आए हैं। इन विचारों ने कई महत्वपूर्ण क़ानूनी पहलू और कुछ ऐसे सवाल भी उठाए हैं जिनपर चर्चा ज़रूरी है।

  • विवादित ज़मीन से जुड़ा मामला-

इनमें से एक विवादित मामला राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मसले से जुड़ा है, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के सात साल पुराने फ़ैसले को चुनौती देने वाली कई अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। इस फ़ैसले में हाई कोर्ट ने 2।77 एकड़ की विवादित ज़मीन को तीन बराबर हिस्सों में तीनों पक्षों को बांटने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की बेंच को मामला बढ़ाए जाने की मुसलमानों के एक पक्ष की अपील को ख़ारिज कर दिया है। कोर्ट ने 2-1 के बहुमत से ये फ़ैसला भी दिया कि 1994 में दिए गए इस्माइल फ़ारूक़ी फ़ैसले पर पुनर्विचार की ज़रूरत नहीं है। इस्माइल फ़ारूक़ी केस में कहा गया था कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है और नमाज़ कहीं भी (खुले में भी) पढ़ी जा सकती है। चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिल अशोक भूषण ने कहा कि कोर्ट ने 1994 में ये टिप्पणी इसलिए की थी ताकि इस तर्क को ख़ारिज किया जा सके कि सरकार मस्जिदों की ज़मीन का अधिग्रहण नहीं कर सकती।

80%
Awesome
  • Design
Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More